बातै सुनहु तौ स्याम सुनाऊँ।
जुवतिनि सौ कहि कथा जोग की, क्यौ न इतौ दुख पाऊँ।।
हौ पचि एक कहौ निरगुन की, ताहू मैं अटकाऊँ।
वै उमड़ै वारिधि के जल ज्यौ, क्यौहूँ थाह न पाऊँ।।
कौन कौन कौ उत्तर दीजै, तातै भज्यौ अगाऊँ।
वै मेरे सिर पटिया पारै, कंथा काहि उढाऊँ।।
एक आँधरौ, हिय की फूटी, दौरत पहिरि खराऊँ।
‘सूर’ सकल पट दरसन वै, हौ बारहखरी पढ़ाऊँ।।4126।।