बातनि ही सुत लाइ लियौ।
तब लौं मथि दधि जननी जसोदा, माखन करि हरि-हाथ दियौ।
लै-लै अधर-पसर करि जेंवत, देखत फूल्यौ मात-हियौ।
आपुहिं खात प्रसंसत आपुहिं, माखन-रोटी बहुत प्रियौ।
जो प्रभु सिव-सनकादिक-दुर्लभ, सुत-हित जसुमति नंद कियौ।
यह दुख निरखत सूरज प्रभु कौ, धन्य धन्य पल सुफल जियौ।।168।।