बातनि क्यौ ब्रजनाथ मिलन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


बातनि क्यौ ब्रजनाथ मिलन कौ बिसरत है अलि नेह।
बंसी-नाद-स्वाद-रस-लंपट, मानत नहिं स्रुति एह।।
को मातुलबध कियौ मधुपुरी, को पति परिजन गेह।
को ऊधौ को जोग निरुपन, नवकिसोर बिनु खेह।।
कोटि जतन जुगबौ वन बेली, बिनु सीचे बिनु मेह।
हीरा हार चीर सोंधा मिलि, नीर बिना सब हेह।।
कुंभज कुभ समान ज्ञानपथ, बिनु गुन पानिष वेह।
‘सूर’ स्यामरस सहज माधुरी, रसकनि की अबलेह।।4018।।

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