बाँस-बन में अनल प्रगट्यौ -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग देश - ताल रूपक


बाँस-बन में अनल प्रगट्यौ, बही बरति बयार।
धरा-हृदय तुरंत बिदर्‌यौ, परी प्रचुर दरार॥
रोय दीन्ही प्रकृति सब, बुधजन बिसार्‌यौ बोध।
रोकि लीन्ही गोपिका गुरुजनन करि पथ-रोध॥
राधिका सब सखिन के सँग भ‌ई अति निरुपाय।
रही कातर दृगनि देखत गमन-पथ असहाय॥
हृदय-बेधी देखि यह, नहिं फट्यौ हिय हहरा‌इ।
रह्यौ देखत हौं मृतक-सो, दियौ रथहि चला‌इ॥
उतरि रथ तें हौं पलक भर द‌ई ताहि न धीर।
कौन मो-सौ निरद‌ई निर्मम निपट बेपीर॥
राधिका की बिकल आकृति, अकथ निज अपराध।
छिन न भूलत मोय ऊधौ ! जरत हृदय अगाध॥
देखि पावौं सकृत पद-जुग, अश्रु-जल सौं धोय।
करौं कछु हलकौ हियौ, नीरव नयन सौं रोय॥
किंतु डर यह लगत भारी, देखि रोवत मोय।
अमित हिय संताप, ताकौ अभल नहिं कछु होय॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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