बहुरौ भूलि न आँखि लगी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


बहुरौ भूलि न आँखि लगी ।
सुपनैहूँ के सुख न सहि सकी, नीद जगाइ भगी ।।
बहुत प्रकार निमेष लगाए, छुटी नही सठगी ।
जनु हीरा हरि लियौ हाथ तै, ढोल बजाइ ठगी ।।
कर मीडति पछिताति बिचारति, इहि बिधि निसा जगी ।
वह मूरति वह सुख दिखरावे, सोई ‘सूर’ सगी ।। 3265 ।।

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