बहुरि फिरि राधा सजति सिंगार -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


बहुरि फिरि राधा सजति सिंगार।
मनहुँ देति पहिरावनि अँग, रन जीते सुरत अपार।।
कटि तट सुभटहिं देति रसन पट, भुज भूषन, उर हार।
कर कंकन, काजर, नकबेसरि, दीन्हौ तिलक लिलार।।
बीरा बिहँसि देति अधरनि कौ, सन्मुख सहे प्रहार।
'सूरदास' प्रभु के जु बिमुख भए, बाँधति कायर बार।।2183।।

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