बहुरि की कृपाहू कहा कृपाल ?
विद्यमान जन दुखित जगत मैं, तुम प्रभु दीन दयाल ?
जीवत जाँचत कन-कन निर्धन, दर-दर रटत बिहाल।
तन छूटे तै धर्म नहीं बछु, जौ दीजै मनि-भाल।
कह दाता जो द्रवै न दीनहिं देखि दुखित ततकाल।
सूर स्याम कौ कहा निहोरौ, चलत वेद की चाल।।159।।
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