बहुत दिन गए ऊधौ, चरन कमल सुख नहीं।
दरस दीन दुखित दीन, छिनछिन बिपदा सही।।
रजनी अति प्रेम पीर, बन गृह मन धरै न धीर।
वासर मन जोवत उर, सरिता बही नैननीर।।
नलिनी जनु हेम घात, कंपित तन कदलि पात।
लोचन जल पावस भयौ, रही री कछु समुझि बात।।
जौ लौ रही अवधि आस, दिन गनि घट रही स्वास।
अब वियोग विरहिनि तन, तजि है कहि 'सूरदास'।। 3605।।