बहुत कृपा इहिं करी गुसाई।
इतनी कृपा करी नहि काहूँ, जिनि राखे सरनाई।
कृपा करी प्रहलाद भक्त कौं, द्रुपद-सुता-पति राखी।
ग्राह ग्रसत गजराज छुड़ायौ, बेद पुरानति भाखी।
जो कछु कृपा करी काली पर, सो काहूँ नहिं कीन्ही।
कोटि ब्रह्मंड रोम-प्रति अंगनि, ते पद फन-प्रति दीन्ही।
धरनि सीस धरि सेस गरब धरयौ इहिं भर अधिक सैनारभौ।
पूरन कृपा करी सूरज प्रभु, पग फन-फन-प्रति वारयौ।।567।।