सखा सब मिलि कहन लागे, तुम न जिय की आस।
अजहुँ नाहिं डरात मोहन, बचे कितनैं गाँस।
तब कह्यौ हरि, चलहु सब मिलि, मारि करहिं बिनास।
चले सब मिलि, जाइ देख्यौ, अगम तन बिकरार।
इत घरनि उत ब्योम कै बिच, गुहा कैं आकार।
पैठि बदन बिदारि डारयौ, अति भए बिस्तार।
मरत असुर चिकार पारयौ, मारयौ नंद-कुमार।
सुनत धुनि सब ग्वाल डरपे, अब न उबरे स्याम।
हमहिं बरजत गयौ, देखौ, किए कैसे काम।
देखि ग्वालनि विकलता तब, कहि उठे बलराम।
बका-बदन बिदारि डारयौ, अबहिं आवत स्याम।
सखा हरि तब टेरि लीन्हे, सबै आवहु धाय।
चोंच फारि बका सँहारौं, तुमहु करहु सहाय।
निकट आए गोप-बालक, देखि हरि सुख पाए।
सूर प्रभु के चरित अगनित, नेति निगमनि गाए।।427।।