बने बिसाल कमल दल नैन।
ताहु मैं अति चारु बिलोकनि, गूठ भाव सूचति सखि सैन।।
बदन-सरोज-निकट कुचित कच, मनहुँ मधुप आए मधु लैन।
तिलक तरन ससि कहत कछुक हँसि, बोलत मधुर मनोहर बैन।।
मदन नृपति की देस महा मद, बुधि बल बसिन सकल उर चैन।
‘सूरदास’ प्रभु दूत दिनहिं दिन, पठवत चरित चुनौती दैन।।1776।।