बने बिसाल अति लोचन लोल।
चितै-चितै हरि चारु बिलोकनि, मानौ माँगत हैं मन ओल।
अधर अनूप, नासिका सुंदर, कुंडल ललित सुदेस कपोल।
मुख मुसुक्यात महा छबि लागति, स्त्रवन सुन सुठि मीठे बोल।
चितवति रहतिं चकोर चंद ज्यौं नैंकु न पलक लगावतिं डोल।
सूरदास प्रभु कैं बस ऐसे, दासी सकल भई बिनु मोल।।630।।