बनतन तै आए अति भोर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग ललित


बनतन तै आए अति भोर।
राति रहे कहुँ गाइनि घेरत, आए हौ ज्यौ चोर।।
अंग अंग उलटे आभूषन, बनहूँ मैं तुम पावत।
बड़भागी तुम तै नहिं कोऊ, कृपा करत जहँ आवत।।
औचक आइ गए गृह मेरै, दुर्लभ दरसन दीन्हौ।
'सूर' स्याम निसि हौ कहुँ जागे पावति अँग अँग चीन्हौ।।2633।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः