बनक बनी बृषभानु किसोरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग


बनक बनी बृषभानु किसोरी।
नख सिख सुंदर चिह्न सुरति के, अरु मरगजी पटोरी।।
उर भुज नील कंचुकी फाटी, प्रगटे है कुच कोरी।
नव धन मध्य देखियत मानहुँ, नव ससि की छवि थोरी।।
आलस नैन सिथिल कज्जल, बलि, मनि ताटंकनि मोरी।
मानहुँ खंजन, हंस कंज पर, लरत चंचु पुट तोरी।।
बिथुरी लट लटकी भृकुटी पर, माँग सु मनि नग रोरी।
मानहुँ कर कोदंड काम अलिसैन कमल हित जोरी।।
अति अनुराग पियत पियूष हरि, अधर सिंधु हद फोरी।
'सूर' सखी निसि संग स्याम के, प्रगट प्रात भई चोरी।।2656।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः