बनक बनी बृषभानु किसोरी।
नख सिख सुंदर चिह्न सुरति के, अरु मरगजी पटोरी।।
उर भुज नील कंचुकी फाटी, प्रगटे है कुच कोरी।
नव धन मध्य देखियत मानहुँ, नव ससि की छवि थोरी।।
आलस नैन सिथिल कज्जल, बलि, मनि ताटंकनि मोरी।
मानहुँ खंजन, हंस कंज पर, लरत चंचु पुट तोरी।।
बिथुरी लट लटकी भृकुटी पर, माँग सु मनि नग रोरी।
मानहुँ कर कोदंड काम अलिसैन कमल हित जोरी।।
अति अनुराग पियत पियूष हरि, अधर सिंधु हद फोरी।
'सूर' सखी निसि संग स्याम के, प्रगट प्रात भई चोरी।।2656।।