बदरिया बधन बिरहिनी आई।
मारू मोर ररत चातक पिक, चढ़ि नग टेर सुनाई।।
दामिनि कर करवाल गहै, अरु सायक बूँद बनाई।
मनमथ फ़ौज जोरि चहुँ दिसि तै, ब्रज सन्मुख ह्वै धाई।।
नदी सुभर सँदेस क्यौ पठऊँ, बाट बिननहूँ छाई।
इक हम दीन हुती कान्हर बिनु, औ इनि गरज सुनाई।।
सूनौ घोष बैर तकि हमसौ, इंद्र निसान बजाई।
'सूरदास' प्रभु मिलहु कृपा करि, होति हमारी धाई।। 3306।।