बढ़ी जस ऐसे काज करे तै।
सो ऊधौ काहे नासत है थोरी बात बुरे तै।।
तृनावर्त केसी धेनुक वक, अघासुर बकी ररे तै।
इंद्र मान मथि गोकुल उबरयौ, गिरिवर पानि धरे तै।।
जमुना तै काली काठयौ हरि, राखे ग्वाल मरे तै।
ऐसै ही जब जतन कियौ है, बिधि बछ वाल हरे तै।।
कंसराज चानूर कुबलया, जग जस इन्है दरे तै।
भयौ जस विमल मलीन ‘सूर’ प्रभु दासी अंक भरे तै।। 173 ।।