बंसी बनराज आजु आई रन जीती।
मेटति है अपनै बल, सबहिन की रीति।।
बिडरे गज-जूथ सील, सैन-लाज भाजी।
घूँघट पट कोट टूटे, छूटै दृग ताजी।।
काहूँ पति-गेह तजे काहूँ तन-प्रान।
काहूँ सुख सरन लयौ, सुनत सुजत-गान।।
कोऊ पग परसि गए, अपने-अपने देस।
कोऊ रस रंक भए, हुते जे नरेस।।
देत मदन मारुत मिलि, दसौं दिसि दुहाई।
सूर श्रीगुपाल लाल, बंसी-बस माई।।650।।