प्रेम सुधा सागर पृ. 46

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
आठवाँ अध्याय

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नंद जी! यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वसुदेव जी के घर भी पैदा हुआ था, इसलिये इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे ‘श्रीमान वासुदेव’ भी कहते हैं। तुम्हारे पुत्र के और भी बहुत-से नाम हैं तथा रूप भी अनेक हैं। इसके जितने गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते हैं। मैं तो उन नामों को जानता हूँ, परन्तु संसार के साधारण लोग नहीं जानते। यह तुम लोगों का परम कल्याण करेगा। समस्त गोप और गौओं को यह बहुत ही आनन्दित करेगा। इसकी सहायता से तुम लोग बड़ी-बड़ी विपत्तियों को बड़ी सुगमता से पार कर लोगे।

ब्रजराज! पहले युग की बात है। एक बार पृथ्वी में कोई राजा नहीं रह गया था। डाकुओं ने चारों ओर लूट-खसोट मचा रखी थी। तब तुम्हारे इसी पुत्र ने सज्जन पुरुषों की रक्षा की और इससे बल पाकर उन लोगों ने लुटेरों पर विजय प्राप्त की। जो मनुष्य तुम्हारे इस साँवले-सलोने शिशु से प्रेम करते हैं। वे बड़े भाग्यवान हैं। जैसे विष्णु भगवान के करकमलों की छत्रछाया में रहने वाले देवताओं को असुर नहीं जीत सकते, वैसे ही इससे प्रेम करने वालों को भीतर या बाहर किसी भी प्रकार के शत्रु नहीं जीत सकते। नंद जी! चाहे जिस दृष्टि से देखें - गुण में, संपत्ति और सौन्दर्य में, कीर्ति और प्रभाव में तुम्हारा यह बालक साक्षात भगवान नारायण के समान है। तुम बड़ी सावधानी और तत्परता से इसकी रक्षा करो।'

इस प्रकार नन्दबाबा को भलीभाँति समझाकर, आदेश देकर गर्गाचार्य जी अपने आश्रम को लौट गये। उनकी बात सुनकर नन्दबाबा को बड़ा ही आनन्द हुआ। उन्होंने ऐसा समझा कि मेरी सब आशा-लालसाएँ पूरी हो गयीं, मैं अब कृतकृत्य हूँ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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