प्रेम सुधा सागर पृ. 429

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
तिरसठवाँ अध्याय

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आप जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के कारण हैं। आप सब में सम, परम शान्त, सबके सुह्रद्, आत्मा और इष्टदेव हैं। आप एक,अद्वितीय और जगत् के आधार तथा अधिष्ठान हैं। हे प्रभो! हम सब संसार से मुक्त होने के लिये आपका भजन करते हैं ।

देव! यह बाणासुर मेरा परम प्रिय, कृपापात्र और सेवक है। मैंने इसे अभयदान दिया है। प्रभो! जिस प्रकार इसके परदादा दैत्यराज प्रह्लाद पर आपका कृपा प्रसाद है, वैसा ही कृपा प्रसाद आप इस पर भी करें ।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा—भगवन्! आपकी बात मानकर—जैसा आप चाहते हैं, मैं इसे निर्भय किये देता हूँ। आपने पहले इसके सम्बन्ध में जैसा निश्चय किया था—मैंने इसकी भुजाएँ काटकर उसी का अनुमोदन किया है। मैं जानता हूँ कि बाणासुर दैत्यराज बलि का पुत्र है। इसलिये मैं भी इसका वध नहीं कर सकता; क्योंकि मैंने प्रह्लाद को वर दे दिया कि मैं तुम्हारे वंश में पैदा होने वाले किसी भी दैत्य का वध नहीं करूँगा। इसका घमंड चूर करने के लिये ही मैंने इसकी भुजाएँ काट दी हैं। इसकी बहुत बड़ी सेना पृथ्वी के लिये भार हो रही थी, इसीलिये मैंने उसका संहार कर दिया है। अब इसकी चार भुजाएँ बच रही हैं। ये अजर, अमर बनी रहेंगी। यह बाणासुर आपके पार्षदों में मुख्य होगा। अब इसको किसी से किसी प्रकार का भय नहीं है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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