प्रेम सुधा सागर पृ. 425

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
तिरसठवाँ अध्याय

Prev.png

भगवान श्रीकृष्ण के साथ बाणासुर का युद्ध

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित्! बरसात के चार महीने बीत गये। परन्तु अनिरुद्धजी का कहीं पता न चला। उनके घर के लोग, इस घटना से बहुत ही शोकाकुल हो रहे थे। एक दिन नारदजी ने आकर अनिरुद्ध का शोणितपुर जाना, वहाँ बाणासुर के सैनिकों को हराना और फिर नागपाशमें बाँध जाना—यह सारा समाचार सुनाया। तब श्रीकृष्ण को ही अपना आराध्यदेव मानने वाले यदुवंशियों ने शोणितपुर पर चढ़ाई कर दी। अब श्रीकृष्ण और बलरामजी के साथ उनके अनुयायी सभी यदुवंशी—प्रद्दुम्न, सात्यिक, गद्, साम्ब, सारण, नन्द, उपनन्द और भद्र आदि से बारह अक्षौहिणी सेना के साथ व्यूह बनाकर चारों ओर से बाणासुर की राजधानी को घेर लिया। जब बाणासुर ने देखा कि यदुवंशियों की सेना नगर के उद्यान, परकोटों, बुर्जों और सिंहद्वारों को तोड़-फोड़ रही है, तब उसे बड़ा क्रोध आया और वह भी बारह अक्षौहिणी सेना लेकर नगर से निकल पड़ा।

बाणासुर की ओर से साक्षात् भगवान शंकर वृषभराज नन्दी पर सवार होकर अपने पुत्र कार्तिकेय और गणों के साथ रणभूमि में पधारे और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण तथा बलरामजी से युद्ध किया। परीक्षित्! वह युद्ध इतना अद्भुत और घमासान हुआ कि उसे देखकर रोंगटे खड़े हो जाते थे। भगवान श्रीकृष्ण से शंकर जी का और प्रदुम्न से स्वामी कार्तिकेय का युद्ध हुआ। बलरामजी से कुम्भाण्ड और कूपकर्ण का युद्ध हुआ। बाणासुर के पुत्र के साथ साम्ब और स्वयं बाणासुर के साथ सात्यिक भिड़ गये। ब्रह्मा आदि बड़े-बड़े देवता, ऋषि-मुनि, सिद्ध-चारण, गन्धर्व-अप्सराएँ और यक्ष विमानों पर चढ़-चढ़कर युद्ध देखने के लिये आ पहुँचे। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने शारंगधनुष के तीखी नोक वाले बाणों से शंकरजी के अनुचरों—भूत, प्रेत, प्रमथ, गुह्यक, डाकिनी, यातुधान, वेताल, विनायक, प्रेतगण, मातृगण, पिशाच, कूष्माण्ड और ब्रह्म-राक्षसों को मार-मारकर खदेड़ दिया।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः