प्रेम सुधा सागर पृ. 420

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
बासठवाँ अध्याय

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उषा-अनिरुद्ध-मिलन

राजा परीक्षित् ने पूछा- महायोगसम्पन्न मुनीश्वर! मैंने सुना है कि यदुवंशशिरोमणि अनिरुद्ध जी ने बाणासुर की पुत्री उषा से विवाह किया था और इस प्रसंग में भगवान श्रीकृष्ण और शंकर जी का बहुत बड़ा घमासान युद्ध हुआ था। आप कृपा करके यह वृतान्त विस्तार से सुनाइये ।

श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित्! महात्मा बलि की कथा तो तुम सुन ही चुके हो। उन्होंने वामनरूपधारी भगवान को सारी पृथ्वी का दान कर दिया था। उनके सौ लड़के थे। उनमें सबसे बड़ा था बाणासुर। दैत्यराज बलि का औरस पुत्र बाणासुर भगवान शिव की भक्ति में सदा रत रहता था। समाज में उसका बड़ा आदर था। उसकी उदारता और बुद्धिमत्ता प्रशंसनीय थी। उसकी प्रतिज्ञा अटल होती थी और सचमुच वह बात का धनी था। उन दिनों वह परम रमणीय शोणितपुर में राज्य करता था। भगवान शंकर की कृपा से इन्द्रादि देवता नौकर-चाकर की तरह उनकी सेवा करते थे। उसके हजार भुजाएँ थीं। एक दिन जब भगवान शंकर ताण्डवनृत्य कर रहे थे, तब उसने अपने हजार हाथों से अनेकों प्रकार के बाजे बजाकर उन्हें प्रसन्न कर लिया। सचमुच भगवान शंकर बड़े ही भक्तवत्सल और शरणागतरक्षक हैं। समस्त भूतों के एकमात्र स्वामी प्रभु ने बाणासुर से कहा- ‘तुम्हारी जो इच्छा हो, मुझसे माँग लो।’ बाणासुर ने कहा—‘भगवन्! आप मेरे नगर की रक्षा करते हुए यहीं रहा करें’।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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