प्रेम सुधा सागर पृ. 412

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
साठवाँ अध्याय

Prev.png

मुझे अपने कर्मों के अनुसार विभिन्न योनियों में भटकता पड़े, इसकी मुझको परवा नहीं है। मेरी एकमात्र अभिलाषा यही है कि मैं सदा अपना भजन करने वालों का मिथ्या संसारभ्रम निवृत्त करने वाले तथा उन्हें अपना स्वरप तक दे डालने वाले आप परमेश्वर के चरणों कि शरण में रहूँ। अच्युत! शत्रुसूदन! गधों के समान घर का बोझा ढ़ोने वाले, बैलों के समान गृहस्थी के व्यापारों में जुते रहकर कष्ट उठाने वाले, कुत्तों के समान तिरस्कार सहने वाले, बिलाव के समान कृपण और हिंसक तथा क्रीत दासों के समान स्त्री की सेवा करने वाले शिशुपाल आदि राजा लोग, जिन्हें वरण करने के लिये आपने मुझे संकेत किया है—उसी अभागिन स्त्री के पति हों, जिनके कानों में भगवान शंकर, ब्रह्मा आदि देवेश्वरों की सभा में गयी जाने वाली आपकी लीला कथा ने प्रवेश नहीं किया है। यह मनुष्य का शरीर जीवित होने पर भी मुर्दा ही है। ऊपर से चमड़ी, दाढ़ी-मूँछ, रोएँ, नख और केशों से ढका हुआ है; परन्तु इसके भीतर मांस, हड्डी, खून, कीड़े, मल-मूत्र, कफ, पित्त और वायु भरे पड़े हैं। इसे वही मूढ़ स्त्री अपना प्रियतम पति समझकर सेवन करती है, जिसे कभी आपके चरणारविन्द के मकरन्द की सुगन्ध सूँघने को नहीं मिली है। कमलनयन! आप आत्माराम हैं। मैं सुन्दरी अथवा गुणवती हूँ, इन बातों पर आपकी दृष्टि नहीं जाती। अतः आपका उदासीन रहना स्वाभाविक है, फिर भी आपके चरणकमलों में मेरा सुदृढ़ अनुराग हो, यही मेरी अभिलाषा है। जब आप इस संसार की अभिवृद्धि के लिये उत्कट रजोगुण स्वीकार करके मेरी ओर देखते हैं, तब वह भी आपका परम अनुग्रह ही है।

मधुसूदन! आपने कहा कि किसी अनुरूप वर को वरण कर लो। मैं आपकी इस बात को भी झूठ नहीं मानती। क्योंकि कभी-कभी एक पुरुष के द्वारा जीती जाने पर भी कशी-नरेश की कन्या अम्बा के समान किसी-किसी की दूसरे पुरुष में भी प्रीती रहती है। कुलटा स्त्री का मन तो विवाह हो जान पर भी नये-नये पुरुषों की ओर खिंचता रहता है। बुद्धिमान पुरुष को चाहिये कि वह ऐसी कुलटा स्त्री को अपने पास न रखे। उसे अपनाने वाला पुरुष लोक और परलोक दोनों खो बैठता है, उभयभ्रष्ट हो जाता है।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः