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श्रीप्रेम सुधा सागर
दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
उनसठवाँ अध्याय
सिर कटते ही मुर दैत्य के प्राण-पखेरू उड़ गये और वह ठीक वैसे ही जल में गिर पड़ा, जैसे इन्द्र के वज्र से शिखर कट जाने पर कोई पर्वत समुद्र में गिर पड़ा हो। मुर दैत्य के सात पुत्र थे—ताम्र, अन्तरिक्ष, श्रवण, विभावसु, वसु, नभस्वान् और अरुण। ये अपने पिता की मृत्यु से अत्यन्त शोकाकुल हो उठे और फिर बदला लेने के लिये क्रोध से भरकर शस्त्रास्त्र से सुसज्जित हो गये तथा पीठ नामक दैत्य को अपना सेनापति बनाकर भौमासुर के आदेश से श्रीकृष्ण पर चढ़ आये। वे वहाँ आकर बड़े क्रोध से भगवान श्रीकृष्ण पर बाण, खड्ग, गदा, शक्ति, ऋष्टि और त्रिशूल आदि प्रचण्ड शस्त्रों की वर्षा करने लगे। परीक्षित्! भगवान शक्ति अमोघ और अनन्त है। उन्होंने अपने बाणों से उनके कोटि-कोटि शस्त्रास्त्र तिल-तिल करके काट गिराये। भगवान के शस्त्रप्रहार से सेनापति पीठ और उसके साथी दैत्यों के सिर, जाँघें, भुजा, पैर और कवच कट गये और उन सभी को भगवान ने यमराज के घर पहुँचा दिया। जब पृथ्वी के पुत्र नरकासुर (भौमासुर) ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण के चक्र और बाणों से हमारी सेना और सेनापतियों का संहार हो गया, तब उसे असह्य क्रोध हुआ। वह समुद्र तट पर पैदा हुए बहुत-से मदवाले हाथियों की सेना लेकर नगर से बाहर निकला। उसने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण अपनी पत्नी के साथ आकाश में गरुड़ पर स्थित हैं, जैसे सूर्य के ऊपर बिजली के साथ वर्षाकालीन श्याममेघ शोभायमान हो। भौमासुर ने स्वयं भगवान के ऊपर शतघ्नी नाम की शक्ति चलायी और उसके सब सैनिकों ने भी एक ही साथ उन पर अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र छोड़े। अब भगवान श्रीकृष्ण भी चित्र-विचित्र पंखवाले तीखे-तीखे बाण चलाने लगे। इससे उसी समय भौमासुर के सैनिकों की भुजाएँ, जाँघें, गर्दन और धड़ कट-कटकर गिरने लगे; हाथी और घोड़े भी मरने लगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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