प्रेम सुधा सागर पृ. 399

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
उनसठवाँ अध्याय

Prev.png

भगवान के पांचजन्य शंख की ध्वनि प्रलयकालीन बिजली की कड़क के समान महाभयंकर थीं। उसे सुनकर मुर दैत्य की नींद टूटी और वह बाहर निकल आया। उसके पाँच सिर थे और अब तक वह जल के भीतर सो रहा था। वह दैत्य प्रलयकालीन सूर्य और अग्नि के समान प्रचण्ड तेजस्वी था। वह इतना भयंकर था कि उसकी ओर आँख उठाकर देखना भी आसान काम नहीं था। उसने त्रिशूल उठाया और इस प्रकार भगवान की ओर दौड़ा, जैसे साँप गरुड़जी पर टूट पड़े। उस समय ऐसा मालूम होता था मानो वह अपने पाँचों मुखों से त्रिलोकी को निगल जायगा। उसने अपने त्रिशूल को बड़े वेग से घुमाकर गरुड़जी पर चलाया और फिर अपने पाँचों मुखों से घोर सिंहनाद करने लगा। उसके सिंहनाद का महान् शब्द पृथ्वी, आकाश, पाताल और दसों दिशाओं में फैलकर सारे ब्रह्माण्ड में भर गया। भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि मुर दैत्य का त्रिशूल गरुड़ की ओर बड़े वेग से आ रहा है। तब अपना हस्तकौशल दिखाकर फुर्ती से उन्होंने दो बाण मारे, जिनसे वह त्रिशूल कटकर तीन टूक हो गया। इसके साथ ही मुर दैत्य के मुखों में भी भगवान ने बहुत-से बाण मारे। इससे वह दैत्य अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा और उसने भगवान पर अपनी गदा चलायी। परन्तु भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी गदा के प्रहार से मुर दैत्य की गदा को अपने पास पहुँचने के पहले ही चूर-चूर कर दिया। अब वह अस्त्रहीन हो जाने के कारण अपनी भुजाएँ फैलाकर श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा और उन्होंने खेल-खेल में ही चक्र से उसके पाँचों सिर उतार लिये ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः