प्रेम सुधा सागर पृ. 380

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
पचपनवाँ अध्याय

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परीक्षित्! भगवान प्रद्दुम्न ने देखा कि उसकी गदा बड़े वेग से मेरी ओर आ रही है। तब उन्होंने अपनी गदा के प्रहार से उसकी गदा गिरा दी और क्रोध में भरकर अपनी गदा उस पर चलायी। तब वह दैत्य मयासुर की बतलायी हुई आसुरी माया का आश्रय लेकर आकाश में चला गया और वहीं से प्रद्दुम्नजी पर अस्त्र-शास्त्रों की वर्षा करने लगा। महारथी प्रद्दुम्नजी पर बहुत-सी अस्त्र-वर्षा करके जब वह उन्हें पीड़ित करने लगा तब उन्होंने समस्त मायाओं को शान्त करने वाली सत्त्वमयी महाविद्या का प्रयोग किया। तदनन्तर शम्बरासुर ने यक्ष, गन्धर्व, पिशाच, नाग और राक्षसों की सैकड़ों मायाओं का प्रयोग किया; परन्तु श्रीकृष्णकुमार प्रद्दुम्नजी ने अपनी महाविद्या से उन सबका नाश कर दिया। इसके बाद उन्होंने एक तीक्ष्ण तलवार उठायी और शम्बरासुर का किरीट एवं कुण्डल से सुशोभित सिर, जो लाल-लाल दाढ़ी, मूँछो से बड़ा भयंकर लग रहा था, काटकर धड़ से अलग कर दिया। देवता लोग पुष्पों की वर्षा करते हुए स्तुति करने लगे और इसके बाद मायावती रति, जो आकाश में चलना जानती थीं, अपनी पति प्रद्दुम्नजी को आकाश मार्ग से द्वारिकापुरी में ले गयी ।

परीक्षित्! आकाश में अपनी गोरी पत्नी के स्थ साँवले प्रद्दुम्नजी की ऐसी शोभा हो रही थी, मानो बिजली और मेघ का जोड़ा हो। इस प्रकार उन्होंने भगवान के उस उत्तम अन्तःपुर में प्रवेश किया। जिसमें सैकड़ों श्रेष्ठ रमणियाँ निवास करती थीं। अन्तःपुर की नारियों ने देखा कि प्रद्दुम्नजी का शरीर वर्षाकालीन मेघ के समान श्यामवर्ण है। रेशमी पीताम्बर धारण किये हुए हैं। घुटनों तक लंबी भुजाएँ हैं। रतनारे नेत्र हैं और सुन्दर मुख पर मन्द-मन्द मुस्कान की अनूठी ही छटा है। उनके मुखारविन्द पर घुँघराली और नीली अलकें इस प्रकार शोभायमान हो रही हैं, मानो भौंरें खेल रहे हों। वे सब उन्हें श्रीकृष्ण समझकर सकुचा गयीं और घरों में इधर-उधर लुक-छिप गयीं। फिर धीरे-धीरे स्त्रियों को यह मालूम हो गया कि श्रीकृष्ण नहीं हैं। क्योंकि उनकी अपेक्षा इनमें कुछ विलक्षणता अवश्य है। अब वे अत्यन्त आनन्द और विस्मय से भरकर इस श्रेष्ठ दम्पत्ति के पा आ गयीं ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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