प्रेम सुधा सागर पृ. 38

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
सातवाँ अध्याय

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शकट-भंजन और तृणावर्त-उद्धार

राजा परीक्षित ने पूछा- प्रभो! सर्वशक्तिमान भगवान श्रीहरि अनेकों अवतार धारण करके बहुत-सी सुन्दर एवं सुनने में मधुर लीलाएँ करते हैं। वे सभी मेरे हृदय को बहुत प्रिय लगती हैं। उनके श्रवण मात्र से भगवत-सम्बन्धी कथा से अरुचि और विविध विषयों की तृष्णा भाग जाती है। मनुष्य का अंतःकरण शीघ्र-से-शीघ्र शुद्ध हो जाता है। भगवान के चरणों में भक्ति और उनके भक्तजनों से प्रेम भी प्राप्त हो जाता है। यदि आप मुझे उनके श्रवण का अधिकारी समझते हों, तो भगवान की उन्हीं मनोहर लीलाओं का वर्णन कीजिये। भगवान श्रीकृष्ण ने मनुष्य-लोक में प्रकट होकर मनुष्य-जाति के स्वभाव का अनुसरण करते हुए जो बाल-लीलाएँ की हैं अवश्य ही वे अत्यन्त अद्भुत हैं, इसलिए आप अब उनकी दूसरी बाल-लीलाओं का भी वर्णन कीजिये।

श्री शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! एक बार[1] भगवान श्रीकृष्ण के करवट बदलने का अभिषेक-उत्सव मनाया जा रहा था। उसी दिन उनका जन्म नक्षत्र भी था। घर में बहुत-सी स्त्रियों के बीच में खड़ी हुईं सती-साध्वी यशोदा जी ने अपने पुत्र का अभिषेक किया। उस समय ब्राह्मण लोग मन्त्र पढ़कर आशीर्वाद दे रहे थे। नन्दरानी यशोदा जी ने ब्राह्मणों का खूब पूजन, सम्मान किया। उन्हें अन्न, वस्त्र, माला, गाय आदि मुँह माँगी वस्तुऐं दीं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यहाँ कदाचित (एक बार) से तात्पर्य है तीसरे महीने के जन्म नक्षत्र युक्त काल से। उस समय श्रीकृष्ण की झाँकी का ऐसा वर्णन मिलता है - ‘स्नेह से तर गोपियों को आँख उठाकर देखते और मुस्कराते हैं। दोनों भुजाएँ बार-बार हिलाते हैं। बड़े मधुर स्वर से थोड़ा-थोड़ा कूजते हैं। गोद में आने के लिये ललकते हैं। किसी वस्तु को पाकर उससे खेलने लग जाते हैं और न मिलने से क्रन्दन करते हैं। कभी-कभी दूध पीकर सो जाते हैं और फिर जागकर आनन्दित करते हैं।’

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