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श्रीप्रेम सुधा सागर
दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
पचपनवाँ अध्याय
कमलदल के समान कोमल एवं विशाल नेत्र, घुटनों तक लंबी-लंबी बाँहें और मनुष्य लोक में सबसे सुन्दर शरीर! रति सलज्ज हास्य के साथ भौंह मटका-कर उनकी ओर देखती और प्रेम से भरकर स्त्री-पुरुष सम्बन्धी भाव व्यक्त करती हुई उनकी सेवा-शुश्रूषा में लगी रहती। श्रीकृष्णनन्दन भगवान प्रद्दुम्न ने उसके भावों में परिवर्तन देखकर कहा—‘देवि! तुम तो मेरी माँ के समान हो। तुम्हारी बुद्धि उलटी कैसे हो गयी ? मैं देखता हूँ कि तुम माता का भाव छोड़कर कामिनी के समान हाव-भाव दिखा रही हो’ । रति ने कहा—‘प्रभो! आप स्वयं भगवान नारायण के पुत्र हैं। शरम्बरासुर आपको सूतिकागृह से चुरा लाया था। आप मेरे पति स्वयं कामदेव हैं और मैं आपकी सदा ही धर्म-पत्नी रति हूँ। मेरे स्वामी! जब आप दस दिन के भी न थे, तब इस शरम्बरासुर ने आपको हरकर समुद्र में डाल दिया था। वहाँ एक मच्छ आपको निगल गया और उसी के पेट से आप यहाँ मुझे प्राप्त हुए हैं। स्वामिन्! अपनी सन्तान आपके खो जाने से आपकी माता पुत्रस्नेह से व्याकुल हो रही हैं, वे आतुर होकर अत्यन्त दीनता से रात-दिन चिन्ता करती रहती हैं। उनकी ठीक वैसी ही दशा हो रही है, जैसी बच्चा खो जाने पर कुरकी पक्षी की अथवा बछड़ा खो जाने पर बेचारी गाय होती है’। मायावती रति ने इस प्रकार कहकर परमशक्तिशाली प्रद्दुम्न को महामाया नाम की विद्या सिखायी। यह विद्या ऐसी है, जो सब प्रकार की मायाओं का नाश कर देती है। अब प्रद्दुम्न जी शम्बरासुर के पास जाकर उस पर बड़े कटु-कटु आक्षेप करने लगे। वे चाहते थे कि यह किसी प्रकार झगड़ा कर बैठे। इतना ही नहीं, उन्होंने युद्ध के लिये उसे स्पष्ट रूप से ललकारा। प्रद्दुम्नजी के कटुवचनों कि चोट से शम्बरासुर तिलमिला उठा। मानो किसी ने विषैले साँप को पैर से ठोकर मार दी हो। उसकी आँखें क्रोध से लाल हो गयीं। वह हाथ में गदा लेकर बाहर निकल आया। उसने अपनी गदा बड़े जोर से आकाश में घुमायी और इसके बाद प्रद्दुम्नजी पर चला दी। गदा चलाते समय उसने इतना कर्कश सिंहनाद किया, मानो बिजली कड़क रही हो । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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