प्रेम सुधा सागर पृ. 378

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
पचपनवाँ अध्याय

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प्रद्युम्र का जन्म और शम्बरासुर का वध

श्रीशुकदेव जी कहते हैं— परीक्षित्! कामदेव भगवान वासुदेव के ही अंश हैं। वे पहले रुद्र भगवान की क्रोधाग्नि से भस्म हो गये थे। अब फिर शरीर-प्राप्ति के लिये उन्होंने अपने अंशी भगवान वासुदेव का ही आश्रय लिया। वे ही काम अबकी बार भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा रुक्मिणीजी के गर्भ से उत्पन्न हुए और प्रद्युम्न नाम से जगत् में प्रसिद्ध हुए। सौन्दर्य, वीर्य, सौशील्य और सद्गुणों में भगवान श्रीकृष्ण से वे किसी प्रकार कम न थे। बालक प्रद्युम्न अभी दस दिन एक भी ण हुए थे कि काम रूपी शम्बरासुर वेष बदलकर सूतिकागृह से उन्हें हर ले गया और समुद्र में फेंकर अपने घर लौट गया। उसे मालूम हो गया था कि यह मेरा भावी शत्रु है। समुद्र में बालक प्रद्युम्न को एक बड़ा भारी मच्छ निगल गया।

तदनन्तर मछुओं ने अपने बहुत बड़े जाल में फँसाकर दूसरी मछलियों के साथ उस मच्छ को भी पकड़ लिया। और उन्होंने उसे ले जाकर शम्बरासुर को भेंट के रूप में दे दिया। शम्बरासुर के रसोइये उस अद्भुत मच्छ को उठाकर रसोई घर में ले आये और कुल्हाड़ियों से उसे काटने लगे। रसोइयें ने मत्स्य के पेट में बालक देखकर उसे शम्बरासुर की दासी मायावती को समर्पित किया। उसके मन में बड़ी शंका हुई। तब नारदजी ने आकर बालक का कामदेव होना, श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी गर्भ से जन्म लेना, मच्छ पेट में जाना सब कुछ कह सुनाया। परीक्षित्! वह मायावती कामदेव की यशस्विनी पत्नी रति ही थी। जिस दिन शंकरजी ने क्रोध से कामदेव का शरीर भस्म हो गया था, उसी दिन से वह उसकी देह के पुनः उत्पन्न होने की प्रतीक्षा कर रही थी। उसी रति को शम्बरासुर ने अपने यहाँ दाल-भात बनाने के काम में नियुक्त कर रखा था। जब उसे मालूम कि इस शिशु के रूप में मेरे पति कामदेव ही हैं, तब वह उसके प्रति बहुत प्रेम करने लगी। श्रीकृष्ण कुमार भगवान प्रद्युम्न बहुत थोड़े दिनों में जवान हो गये। उनका रूप-लावण्य इतना अद्भुत था कि जो स्त्रियाँ उनकी ओर देखतीं, उनके मन में श्रृंगार-रस का उद्दीपन हो जाता।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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