प्रेम सुधा सागर पृ. 372

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
चौवनवाँ अध्याय

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शिशुपाल के साथी राजाओं की और रुक्मी की हार तथा श्रीकृष्ण-रुक्मिणी-विवाह

श्रीशुकदेवजी कहते हैं—परीक्षित्! इस प्रकार कह-सुनकर सब-के-सब राजा क्रोध से आग बबूला हो उठे और कवच पहनकर अपने-अपने वाहनों पर सवार हो गये। अपनी-अपनी सेना के सात सब धनुष ले-लेकर भगवान श्रीकृष्ण पीछे दौड़े। राजन्! जब यदुवंशियों के सेनापतियों ने देखा कि शत्रुदल हम पर चढ़ा आ रहा है, तब उन्होंने भी अपने-अपने धनुष का टंकार किया और घूमकर उनके सामने डट गये। जरासन्ध की सेना के लोग कोई घोड़े पर, कोई हाथी पर, तो कोई रथ पर चढ़े हुए थे। वे सभी धनुर्वेद के बड़े मर्मज्ञ थे। वे यदुवंशियों पर इस प्रकार बाणों की वर्षा करने लगे, मानो दल-के-दल बादल पहाड़ो पर मूसलधार पानी बरसा रहे हों। परमसुन्दरी रुक्मिणीजी ने देखा कि उनके पति श्रीकृष्ण की सेना बाण-वर्षा से ढक गयी है। तब उन्होंने लज्जा के साथ भयभीत नेत्रों से भगवान श्रीकृष्ण के मुख की ओर देखा। भगवान ने हँसकर कहा—‘सुन्दरी! डरो मत! तुम्हारी सेना अभी तुम्हारे शत्रुओं की सेना को नष्ट किये डालती है’।

इधर गद और संकर्षण आदि यदुवंशी वीर अपने शत्रुओं का पराक्रम और अधिक न सह सके। वे अपने बाणों से शत्रुओं के हाथी, घोड़े तथा रथों को छिन्न-भिन्न करने लगे। उनके बाणों से रथ, घोड़े और हाथियों पर बैठे विपक्षी वीरों के कुण्डल, किरीट और पगड़ियों से सुशोभित करोंड़ों सिर, खड्ग, गदा और धनुषयुक्त हाथ, पहुँचे, जाँघें और पैर कट-कटकर पृथ्वी पर गिरने लगे। इसी प्रकार घोड़े, खच्चर, हाथी, ऊँट, गधे और मनुष्यों के सिर भी कट-कटकर रणभूमि में लोटने लगे। अन्त में विजय की सच्ची आकांक्षा वाला यदुवंशियों ने शत्रुओं की सेना तहस-नहस कर डाली। जरासन्ध आदि सभी राजा युद्ध से पीठ दिखाकर भाग खड़े हुए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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