प्रेम सुधा सागर पृ. 354

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
इक्यावनवाँ अध्याय

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परीक्षित! वह पुरुष इस प्रकार ठोकर मारकर जगाये जाने से कुछ रुष्ट हो गया था। उसकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन के शरीर में आग पैदा हो गयी और वह क्षणभर में जलकर ढेर हो गया। राजा परीक्षित ने पूछा - भगवन! जिसके दृष्टिपात मात्र से कालयवन जलकर भस्म हो गया, वह पुरुष कौन था? किस वंश का था? उसमें कैसी शक्ति थी और वह किसका पुत्र था? आप कृपा करके यह भी बतलाइये कि वह पर्वत की गुफा में जाकर क्यों सो रहा था? श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! वे इक्ष्वाकुवंशी महाराज मान्धाता के पुत्र राजा मुचुकुन्द थे। वे ब्राह्मणों के परम भक्त, सत्यप्रतिज्ञ, संग्रामविजयी और महापुरुष थे।

एक बार इन्द्रियादि देवता असुरों से अत्यन्त भयभीत हो गये थे। उन्होंने अपनी रक्षा के लिये राजा मुचुकुन्द से प्रार्थना की और उन्होंने बहुत दिनों तक उनकी रक्षा की। जब बहुत दिनों के बाद देवताओं को सेनापति के रूप में स्वामी कार्तिकेय मिल गये, तब उन लोगों ने राजा मुचुकुन्द से कहा- ‘राजन! आपने हमलोगों की रक्षा के लिये बहुत श्रम और कष्ट उठाया है। अब आप विश्राम कीजिये। वीर शिरोमणे! आपने हमारी रक्षा के लिये मनुष्य लोक का अपना अकण्टक राज्य छोड़ दिया और जीवन की अभिलाषाएँ तथा भोगों कब भी परित्याग कर दिया।

अब आपके पुत्र, रानियाँ, बन्धु-बान्धव और अमात्य-मन्त्री तथा आपके समय की प्रजा में से कोई नहीं रहा है। सब-के-सब काल के गाल में चले गये। काल समस्त बलवानों से भी बलवान है। वह स्वयं परम समर्थ अविनाशी और भगवत्स्वरूप है। जैसे ग्वाले पशुओं को अपने वश में रखते हैं, वैसे ही वह खेल-खेल में सारी प्रजा को अपने अधीन रखता है।

राजन! आपका कल्याण हो। आपकी जो इच्छा हो हमसे माँग लीजिये। हम कैवल्य-मोक्ष के अतिरिक्त आपको सब कुछ दे सकते हैं। क्योंकि कैवल्य-मोक्ष देने की सामर्थ्य तो केवल अविनाशी भगवान विष्णु में ही है। परम यशस्वी राजा मुचुकुन्द ने देवताओं के इस प्रकार कहने पर उनकी वन्दना की और बहुत थके होने के कारण निद्रा का ही वर माँगा तथा उनसे वर पाकर वे नींद से बहरकर पर्वत की गुफा में जा सोये। उस समय देवताओं ने कह दिया था कि ‘राजन! सोते समय यदि आपको कोई मूर्ख बीच में ही जगा देगा तो वह आपकी दृष्टि पड़ते ही उसी क्षण भस्म हो जायगा।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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