प्रेम सुधा सागर पृ. 348

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
पचासवाँ अध्याय

Prev.png

जब उन्होंने देखा कि युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण की गरुड़चिह्न से चिह्नित और बलराम जी की तालचिह्न से चिह्नित ध्वजावाले रथ नहीं दीख रहे हैं, तब वे शोक के आवेग से मूर्च्छित हो गयीं। जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि शत्रु-सेना के वीर हमारी सेना पर इस प्रकार बाणों की वर्षा कर रहे हैं, मानो बादल पानी की अनगिनत बूँदें बरसा रहे हों और हमारी सेना उससे अत्यन्त पीड़ित, व्यथित हो रही है; तब उन्होंने अपने देवता और असुर - दोनों से सम्मानित सारंगधनुष का टंकार किया।

इसके बाद वे तरकस में से बाण निकालने, उन्हें धनुष पर चढ़ाने और धनुष की डोरी खींचकर झुंड-के-झुंड बाण छोड़ने लगे। उस समय उनका वह धनुष इतनी फुर्ती से घूम रहा था, मानो कोई बड़े वेग से अलातचक्र (लुकारी) घुमा रहा हो। इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण जरासन्ध की चतुरंगिणी - हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सेना का संहार करने लगे। इससे बहुत-से हाथियों के सिर फट गये और वे मर-मरकर गिरने लगे। बाणों की बौछार से अनेकों घोड़ों के सिर धड़ से अलग हो गये। घोड़े, ध्वजा, सारथि और रथियों के नष्ट हो जाने से बहुत-से रथ बेकाम हो गये। पैदल सेना की बाँहें, जाँघ और सिर आदि अंग-प्रत्यंग कट-कटकर गिर पड़े।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः