प्रेम सुधा सागर पृ. 341

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
उनचासवाँ अध्याय

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अक्रूर जी का हस्तिनापुर जाना

श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! भगवान के आज्ञानुसार अक्रूरजी हस्तिनापुर गये। वहाँ की एक-एक वस्तु पर पुरुवंशी नरपतियों की अमरकीर्ति की छाप लग रही है। वे वहाँ पहले धृतराष्ट्र, भीष्म, विदुर, कुन्ती, बाह्लीक और उनके पुत्र सोमदत्त, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, द्रोणपुत्र अश्वत्थामा, युधिष्ठिर आदि पाँचों पाण्डव तथा अन्यान्य इष्ट-मित्रों से मिले। जब गान्दिनीनन्दन अक्रूरजी सब इष्ट-मित्रों और सम्बन्धियों से भलीभाँति मिल चुके, तब उनसे उन लोगों ने अपने मथुरावासी स्वजन-सम्बन्धियों की कुशल-क्षेम पूछी। उनका उत्तर देकर अक्रूर जी ने भी हस्तिनापुरवासियों के कुशल-मंगल के सम्बन्ध में पूछताछ की।

परीक्षित! अक्रूर जी यह जानने कल लिये कि धृतराष्ट्र पाण्डवों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, कुछ महीनों तक वहीं रहे। सच पूछो तो, धृतराष्ट्र में अपने दुष्ट पुत्रों की इच्छा के विपरीत कुछ करने का साहस न था। वे शकुनि आदि दुष्टों की सलाह के अनुसार ही काम करते थे। अक्रूर जी को कुन्ती और विदुर ने यह बतलाया कि धृतराष्ट्र के लड़के दुर्योधन आदि पाण्डवों के प्रभाव, शस्त्रकौशल, बल, वीरता तथा विनय आदि सद्गुण देख-देखकर उनसे जलते-रहते हैं। जब वे यह देखते हैं कि प्रजा पाण्डवों से ही विशेष प्रेम रखती है, तब तो वे और भी चिढ़ जाते हैं और पाण्डवों का अनिष्ट करने पर उतारू हो जाते हैं। तब तक दुर्योधन आदि धृतराष्ट्र के पुत्रों ने पाण्डवों पर कई बार विषदान आदि बहुत-से अत्याचार किया हैं और आगे भी बहुत कुछ करना चाहते हैं ।

जब अक्रूर जी कुन्ती के गहर आये, तब वह अपने भाई के पास जा बैठीं। अक्रूर जी को देखकर कुन्ती के मन में मायके की स्मृति जग गयी और नेत्रों में आँसू भर आये। उन्होंने कहा - ‘प्यारे भाई! क्या कभी मेरे माँ-बाप, भाई-बहिन, भतीजे, कुल की स्त्रियाँ और सखी-सहेलियाँ मेरी याद करती हैं? मैंने सुना है कि हमारे भतीजे भगवान श्रीकृष्ण और कमलनयन बलराम बड़े ही भक्तवत्सल और शरणागत-रक्षक हैं। क्या वे कभी अपने फुफेरे भाइयों को भी याद करते हैं? मैं शत्रुओं के बीच घिरकर शोकाकुल हो रही हूँ। मेरी वही दशा है, जैसे कोई हिरनी भेड़ियों के बीच में पड़ गयी हो। मेरे बच्चे बिना बाप के हो गये हैं। क्या हमारे श्रीकृष्ण कभी यहाँ आकर मुझको और इन अनाथ बालकों को सान्त्वना देंगे?

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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