प्रेम सुधा सागर पृ. 320

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
सैंतालीसवाँ अध्याय

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उद्धव तथा गोपियों की बातचीत और भ्रगरगीत

श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! गोपियों ने देखा कि श्रीकृष्ण के सेवक उद्धव जी की आकृति और वेषभूषा श्रीकृष्ण से मिलती-जुलती है। घुटनों तक लंबी-लंबी भुजाएँ हैं, नूतन कमलदल के समान कोमल नेत्र हैं, शरीर पर पीताम्बर धारण किये हुए हैं, गले में कमल-पुष्पों की माला है, कानों में मणिजटित कुण्डल झलक रहे हैं और मुखारविन्द अत्यन्त प्रफुल्लित है।

पवित्र मुस्कान वाली गोपियों ने आपस में कहा - ‘यह पुरुष देखने में तो बहुत सुन्दर है। परन्तु यह है कौन? कहाँ से आया है? किसका दूत है? इसने श्रीकृष्ण - जैसी वेशभूषा क्यों धारण कर रखी है?’ सब-की-सब गोपियाँ उनका परिचय प्राप्त करने के लिये अत्यन्त उत्सुक हो गयीं और उसमें से बहुत-सी पवित्रकीर्ति भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों के आश्रित तथा उनके सेवक-सखा उद्धव जी को चारों ओर से घेरकर खड़ी हो गयीं।

जब उन्हें मालूम हुआ कि ये तो रमारमण भगवान श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर आये हैं, तब उन्होंने विनय से झुककर सलज्ज हास्य, चितवन और मधुर वाणी आदि से उद्धव जी का अत्यन्त सत्कार किया तथा एकान्त में आसन पर बैठकर वे उनसे इस प्रकार कहने लगीं - ‘उद्धव जी! हम जानती हैं कि आप यदुनाथ के पार्षद हैं। उन्हीं का संदेश लेकर यहाँ पधारे हैं। आपके स्वामी ने अपने माता-पिता को सुख देने के लिये आपको यहाँ भेजा है। अन्यथा हमें तो अब नन्दगाँव में - गौओं के रहने की जगह में उनके स्मरण करने योग्य कोई भी वस्तु दिखायी नहीं पड़ती; माता-पिता आदि सगे-सम्बन्धियों का स्नेह-बन्धन तो बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी बड़ी कठिनाई से छोड़ पाते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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