प्रेम सुधा सागर पृ. 298

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
चौवालीसवाँ अध्याय

Prev.png
चाणूर, मुष्टिर आदि पहलवानों का तथा कंस का उद्धार

श्री शुकदेव जी कहते हैं - परीक्षित! भगवान श्रीकृष्ण ने चाणूर आदि के वध का निश्चित संकल्प कर लिया। जोड़ बन दिये जाने पर श्रीकृष्ण चाणूर से और बलरामजी मुष्टिक से जा भिड़े। वे लोग एक-दूसरे को जीत लेने की इच्छा से हाथ से हाथ बाँधकर और पैरों में पैर अड़ाकर बलपूर्वक अपनी-अपनी ओर खींचने गये। वे पंजों से पंजे, घुटनों से घुटने, माथे से माथा और छाती से छाती भिड़ाकर एक-दूसरे पर चोट करने लगे। इस प्रकार दाँव-पेंच करते-करते अपने-अपने जोड़ीदार को पकड़कर इधर-उधर घुमाते, दूर ढकेल देते, ज़ोर से जकड़ लेते, लिपट जाते, उठाकर पटक देते, छूटकर निकल भागते और कभी छोड़कर पीछे हट जाते थे। इस प्रकार एक-दूसरे को रोकते, प्रहार करते और अपने जोड़ीदार को पछाड़ देने की चेष्टा करते। कभी कोई नीचे गिर जाता, तो दूसरा उसे घुटनों और पैरों में दबाकर उठा लेता। हाथों से पकड़कर ऊपर ले जाता। गले में लिपट जाने पर ढकेल देता और आवश्यकता होने पर हाथ-पाँव इकट्ठे करके गाँठ बाँध देता।

परीक्षित! इस दंगल को देखने के लिये नगर की बहुत-सी महिलाएँ भी आयी हुई थीं। उन्होंने जब देखा कि बड़े-बड़े पहलवानों के साथ ये छोटे-छोटे बलहीन बालक लड़ाये जा रहे हैं, तब वे अलग-अलग टोलियाँ बनाकर करुणावश आपस में बात-चीत करने लगीं - ‘यहाँ राजा कंस के सभासद बड़ा अन्याय और अधर्म कर रहे हैं। कितने खेद की बात है कि राजा के सामने ही ये बली पहलवानों और निर्बल बालकों के युद्ध का अनुमोदन करते हैं। बहिन! देखो, इन पहलवानों का एक-एक अंग व्रज के समान कठोर है। ये देखने में बड़े भारी पर्वत-से मालूम होते हैं। परन्तु श्रीकृष्ण और बलराम अभी जवान भी नहीं हुए हैं। इसकी किशोरावस्था है। इनका एक-एक अंग अत्यन्त सुकुमार है। कहाँ ये और कहाँ वे?

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

-

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः