प्रेम सुधा सागर पृ. 28

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
चौथा अध्याय

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श्री शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित! एक तो कंस की बुद्धि स्वयं ही बिगड़ी हुई थी, फिर उसे मन्त्री ऐसे मिले थे, जो उससे भी बढ़कर दुष्ट थे। इस प्रकार उनसे सलाह करके काल के फन्दे में फँसे हुए असुर कंस ने यही ठीक समझा कि ब्राह्मणों को ही मार डाला जाय। उसने हिंसा प्रेमी राक्षसों को संत पुरुषों की हिंसा करने का आदेश दे दिया। वे इच्छानुसार रूप धारण कर सकते थे। जब वे इधर-उधर चले गये, तब कंस ने अपने महल में प्रवेश किया। उन असुरों की प्रकृति थी रजोगुणी। तमोगुण के कारण उनका चित्त उचित और अनुचित के विवेक से रहित हो गया था। उनके सर पर मौत नाच रही थी। यही कारण है कि उन्होंने संतों से द्वेष किया।

परीक्षित! जो लोग महान संत पुरुषों का अनादर करते हैं, उनका यह कुकर्म उनकी आयु, लक्ष्मी, कीर्ति, धर्म, लोक-परलोक विषय-भोग और सब-के-सब कल्याण के साधनों को नष्ट कर देता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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