प्रेम सुधा सागर पृ. 240

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
छत्तीसवाँ अध्याय

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इस प्रकार ललकार कर भगवान ने ताल ठोकी और उसे क्रोधित करने के लिये वे अपने एक सखा के गले में बाँह डालकर खड़े हो गये। भगवान श्रीकृष्ण की इस चुनौती से वह क्रोध के मारे तिलमिला उठा और अपने खुरों से बड़े जोर से धरती खोदता हुआ श्रीकृष्ण की ओर झपटा। उस समय उसकी उठायी हुई पूँछ के धक्के से आकाश के बादल तितर-बितर होने लगे। उसने अपने तीखे सींग आगे कर लिये। लाल-लाल आँखों से टकटकी लगाकर श्रीकृष्ण की ओर टेढ़ी नज़र से देखता हुआ वह उनपर इतने वेग से टूटा, मानो इन्द्र के हाथ से छोड़ा हुआ वज्र हो।

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों सींग पकड़ लिये और जैसे एक हाथी अपने से भिड़ने वाले दूसरे हाथी को पीछे हटा देता है, वैसे ही उन्होंने उसे अठारह पग पीछे ठेलकर गिरा दिया। भगवान के इस प्रकार ठेल देने पर वह फिर तुरंत ही उठ खड़ा हुआ और क्रोध से अचेत होकर लंबी-लंबी साँस छोड़ता हुआ फिर उन पर झपटा। उस समय उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो रहा था।

भगवान ने जब देखा कि वह अब मुझ पर प्रहार करना ही चाहता है, तब उन्होंने उनके सींग पकड़ लिये और उसे लात मारकर ज़मीन पर गिरा दिया और फिर पैरों से दबाकर इस प्रकार उसका कचूमर निकाला, जैसे कोई गीला कपड़ा निचोड़ रहा हो। इसके बाद उसी का सींग उखाड़कर उसको खूब पीटा, जिससे वह पड़ा ही रहा गया।

परीक्षित! इस प्रकार वह दैत्य मुँह से खून उगलता और गोबर-मूत करता हुआ पैर पटकने लगा। उसकी आँखें उलट गयीं और उसने बड़े कष्ट के साथ प्राण छोड़े। अब देवता लोग भगवान पर फूल बरसा-बरसाकर उनकी स्तुति करने लगे। जब भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार बैल के रूप में आने-वाले अरिष्टासुर को मार डाला, तब सभी गोप उनकी प्रशंसा करने लगे। उन्होंने बलराम जी के साथ गोष्ठ में प्रवेश किया और उन्हें देख-देखकर गोपियों के नयन-मन आनन्द से भर गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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