प्रेम सुधा सागर पृ. 205

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(पूर्वार्ध)
उनतीसवाँ अध्याय

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गोपियों के शत-शत यूथों के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण वैजयन्ती माला पहले वृन्दावन को शोभायमान करते हुए विचरण करने लगे। कभी गोपियाँ अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के गुण और लीलाओं का गान करतीं, तो कभी श्रीकृष्ण गोपियों के प्रेम और सौन्दर्य के गीत गाने लगते। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ यमुनाजी के पावन पुलिन पर, जो कपूर के समान चमकीली बालू से जगमगा रहा था, पदार्पण किया।

वह यमुना जी की तरंल तरंगों के स्पर्श के शीतल और कुमुदिनी की सहज सुगन्ध से सुवासित वायु के द्वारा सेवित हो रहा था। उस आनन्दप्रद पुलिन पर भगवान ने गोपियों के साथ क्रीडा की। हाथ फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना, उनकी चोटी, जाँघ, नीवी और स्तन आदि का स्पर्श करना, विनोद करना, नख-क्षत करना, विनोदपूर्ण चितवन से देखना और मुस्काना - इन क्रियाओं के द्वारा गोपियों के दिव्य कामरस को, परमोज्ज्वल प्रेमभाव को उत्तेजित करते हुए भगवान श्रीकृष्ण उन्हें क्रीडा द्वारा आनन्दित करने लगे।

उदार शिरोमणि सर्वव्यापक भगवान श्रीकृष्ण ने जब इस प्रकार गोपियों का सम्मान किया, तब स्त्रियों में हम ही सर्वश्रेष्ठ हैं, हमारे समान और कोई नहीं है। वे कुछ मानवती हो गयीं। जब भगवान ने देखा कि इन्हें तो अपने सुहाग का कुछ गर्व हो आया है और अब मान भी करने लगी हैं, तब वे उनका गर्व शान्त करने के लिये तथा उनका मान दूर कर प्रसन्न करने के लिये वही - उनके बीच में ही अन्तर्धान हो गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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