प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 47

प्रेम सत्संग सुधा माला

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जुड़ना पूरा-पूरा हुए बिना कल्याण में देर होती है। चाहे एक जन्म मन हो या एक और जन्म धारण करके, पर यह सर्वथा सत्य है कि महापुरुष से एक क्षण के लिये जुड़ा हुआ भी आगे चलकर पूरा-पूरा जुड़ ही जाता है तथा उसका पूर्ण कल्याण हो ही जाता है।

43- यह मार्ग ही ऐसा है कि इस पर सर्वथा अहंकारशून्य होकर सारी ममता-माया छोड़कर, बस, श्रीकृष्ण को ही एकमात्र जीवन का सार-सर्वस्व बनाकर चलना पड़ता है। जब तक बिलकुल अपनपा मिटा नहीं दिया जाता, तब तक प्रेम प्रकट ही नहीं होता। आप एक भी सच्चे व्रजप्रेमी के जीवन में भी यह बात नहीं देखेंगे कि उनके मन में संसार भी हो और श्रीकृष्ण प्रेम भी हो। अन्धकार और प्रकाश दोनों साथ रह ही नहीं सकते या तो संसार रहेगा या श्रीकृष्ण रहेंगे।

श्रीकृष्ण की कृपा से आपके मन में एक धुँधली चाह उत्पन्न हुई है, पर यह चाह इतनी मन्द है कि इसको बहुत तेजी से बढ़ाने की तथा यह सूख न जाय- इसके लिये चेष्टा करने की पूरी आवश्यकता है। बात यह है कि जब तक मन श्रीकृष्ण-प्रेम-रस से सिक्त नहीं होगा, तब तक कोई भी वस्तु सदा रहने वाली शान्ति दे ही नहीं सकती। इसे आप अपने जीवन में अनुभव करेंगे, पर धीरे-धीरे।

एक ख़ास बात और है- वह यह है कि आप खूब तेजी से वैराग्य बढ़ाइये। आपके लिये ही नहीं, किसी भी प्रेम चाहने वाली साधक के लिये यह आवश्यक है कि विषयों से तीव्र वैराग्य तथा मन केद्वारा निरन्तर भगवत्-चिन्तन हो।यह नहीं होगा तथा कोई आपको कहे कि शान्ति मिल जायगी तो समझ लें कि या तो वह कहने वाला स्वयं भ्रम में है या जान-बूझकर आपको धोखा दे रहा है। संसार में जबतक भगवद्बुद्धि बिलकुल स्थिर नहीं हो जायगी, तब तक यदि संसार का तनिक भी चिन्तन होगा तो वह अशान्ति करेगा ही। आग को पकड़कर मनुष्य जले नहीं, यह असम्भव है? इसी तरह संसार को संसार के रूप में दखते रहने पर इसके चिन्तन से जलन बढ़ेगी ही, चाहे आप कहीं भी- किसी भी देश में चले जायँ। आपको पता नहीं है- शायद वृन्दावन में रहने वाले भी कई व्यक्ति बहुत अशान्त रहते हैं।जिन्हें वे आँखें प्राप्त नहीं हैं, वे वृन्दावन में भी जाकर राग-द्वेष से बचे नहीं रह सकते। वहाँ भी उन्हें क्षणिक शान्ति ही मिलेगी। वृन्दावन की चिदानन्दमयता का अनुभव उन्हें नहीं ही होगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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