प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 32

प्रेम सत्संग सुधा माला

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वह फिल्म तो आज भी ज्यों-का-त्यों है, केवल छिप गया है। सिनेमा देखते हैं, वह आरम्भ से लेकर अन्त तक का खेल सजाया हुआ होता है। उसी प्रकार भगवान् के विराट् दिव्य शरीर में अनादिकाल से लेकर अनन्तकाल तक होने वाली सभी लीलाएँ सजायी हुई हैं। जो जैसा अधिकारी होता है, उसके सामने उसके अधिकार भर की लीला आती है, फिर रील घूम जाता है। अर्जुन ने चाहा विश्वरूप देखना, उसके सामने उसके अधिकार भर का आया।

29-चाह सच्ची होनी चाहिये। फिरतोपहले-से-पहले भगवान् मामूली-से-मामूली बात भी करके रख देते हैं। मन में विचार तो पीछे आयेगा, पर भगवान् जानते हैं कि यह उस दिन उस समय यह चीज चाहेगा तथा पहले से ही उसकी पूरी व्यवस्था करके रख देते हैं। एक मामूली-सी बात बतला रहा ह-मैंXX था, दिन में किसी कारण से भोजन कम किया था, इसीलिये जोर से भूख लग रही थी। मन में बार-बार भूख का खयाल आता था। मनमेंआया कहीं से कोई वृन्दावन का प्रसाद लाकर देता तो थोड़ा खा लेत-तीव्र इच्छा थी। वहाँ से सत्संग में आया। आतेही एक आदमी ने वृन्दावन का प्रसाद देना आरम्भ किया। मैं तो चकित रह गया! क्योंकि मेरे पेट की बात किसी को मालूम थी ही नहीं। सुना कि x x x x x आये हैं और प्रसाद ले आये हैं।

30-व्रज के मधुर भाव के वास्तविक अधिकारी बहुत कम ही होते हैं। जिसके लिये गीता कही गयी, जिस गीता के जोड़ का ग्रन्थ मिलना कठिन है, उसी अर्जुन ने एक बार भगवान् श्रीकृष्ण से प्रार्थना क-प्रभो! आपगोपसुन्दरियों के साथ होने वाली अपनी लीला की बात हमें बतायें।’ भगवान् नट गये और बोल-उसे सुनकर तुम्हें देखने की इच्छा हो जायगी, इसीलिये इस बात कोजाने दो।’ अर्जुनव्याकुलहोकर चरणों में गिर पड़े।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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