प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 2

प्रेम सत्संग सुधा माला

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4— आरम्भ में कठिनाई होती है, पर ऐसी-ऐसी युक्तियाँ हैं कि जिनके करने से मन वश में होगा ही। जब तक मन उसमें लीन नहीं होगा, तब तक केवल पढ़कर वह आनन्द आप ले ही नहीं सकते। आप करना चाहें तो मैं एक युक्ति बतलाता हूँ, पर वह होगी करने से ही। मान लें आप ‘हरे राम’ जपते हैं। इसको जपते रहें, पर प्रत्येक मन्त्र के उच्चारण के साथ एक बार आप यह ध्यान कीजिये कि श्रीप्रिया-प्रियतम एक वृक्ष के नीचे खड़े हैं। संध्या के समय कहीं चले गये। टीबे पर बैठकर देखिये— एक सड़क है, अत्यन्त सुन्दर सड़क है और उस पर वृक्ष-ही-वृक्ष लगे हैं। अब प्रत्येक वृक्ष के नीचे आप एक बार श्रीकृष्ण को एवं श्रीराधारानी को देखिये तथा माला के मनके फेरते चले जाइये। इस प्रकार तीन माला अर्थात् वृक्ष के नीचे 300 बार श्रीप्रिया-प्रियतम का दिव्य चिन्तन कीजिये, इस दृढ़ निश्चय के साथ कि यह करना ही है। यह अभ्यास यदि बढ़ गया और कहीं 16 माला ‘हरे राम’ के षोडश नाम की हो गयी तो आगे मन को टिकाने में बड़ी सुविधा होगी। पहले तीन माला से आरम्भ करें।

वास्तवमें यदि आप चाहते हैं तो आपको यह करना ही पड़ेगा। धीरे-धीरे मन की बदशाही मिटानी ही पड़ेगी। आप देखें, मन तो जैसे आज बदमाशी कर रहा है, मरते समय और भी अधिक बदमाशी कर सकता है तथा पता नहीं कब किस संग में फँसकर मन पर कैसा रंग चढ़ जाय। अतः उसके पहले ही मन की बदमाशी को पूरी तरह मिटा दें। उसके लिये यह बड़ी सुन्दर युक्ति है। एक युक्ति और भी है। पर पहले आप इसे करें, फिर आगे की युक्ति कभी पीछे बतायी जा सकती है। वह युक्ति संक्षेप में यह है कि जैसे माला का जो नियम चल रहा है, वह चले; पर खूब कड़ाई से यह नियम बना लें कि ‘लगातार तीन-चार घंटे बैठकर व्रज-सम्बन्धी 5,000 चीजों को याद करूँगा। एक-दो सेकण्ड के लिये उन पाँच हजार चीजों को याद कर ही लूँगा, चाहे मन कितनी ही बदमाशी करे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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