प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 141

प्रेम सत्संग सुधा माला

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व्रजप्रेम की साधना का जहाँशास्त्रों में वर्णन है, वहाँ यह आता है कि साधक को स्वयं ठीक उसी प्रकार की देह की भावना करके चौबीसों घंटे वहीं साथ रहने का ध्यान करना चाहिये। उसमें नियम बँध जाता है कि यह सेवा हमें करनी है। जैसे मान लें एक सेवा है- हाथ-पैर-धुलाना। अब दिन भर में न जाने कितनी बार इस सेवा का समय आयेगा, उस समय तो मन को आना ही पड़ेगा। लगन होने पर चाहे और सब काम बिगड़े, पर साधक उतनी देर के लिये चाहे बीस सेकण्ड ही क्यों न हो, सब काम छोड़कर जहाँ बैठा हुआ है, जो कर रहा है, सबको गौण करके ध्यानस्थ हो जायगा। अभ्यास होने पर लोगों को पता नहीं चलेगा। लिखते-पढ़ते, बातचीत करते हुए वह मन-ही-मन वहाँ की सेवा करते रह सकता है।

निरन्तर भगवत्सेवा की मानसिक भावना करते रहने से मन की क्या अवस्था होती है, यह कुछ इतनी विलक्षण बात है कि मेरा अनुमान है- आपने जो समझा होगा, उससे बिलकुल नयी बात है। उसकी कल्पना भी अभी नहीं हो सकती कि कैसे क्या-क्या होता है। वह तो केवल वही जान सकता है, जो स्वयं इस ओर पैर बढ़ाये और श्रीकृष्ण की कृपा का आश्रय करके आगे पाँव रखता चला जाय; फिर सारी बात समझ में आती जायगी और बिलकुल ऐसी अवस्था का ज्ञान होगाकि वह स्वयं केवल अनुभव कर सकेगा, दूसरों को समझा नहींसकेगा।

जैसे भी हो एक बार चेष्टा करके भगवान् की लीला में मन को अच्छी तरह फँसा दें। जब मन टिकेगा, तब फिर स्वयं नयी-नयी चीजें, नये-नये दृश्य मन के सामने भगवान् की दया से आने लग जायँगे। फिर यह आवश्यकता नहीं रहेगी कि किसी से चलकर लीला सुनें। भगवान् की कृपा से स्वयं ऐसी विलक्षण-विलक्षण झाँकी- प्रेम से भरी हुई झाँकी आयेगी कि मन आनन्द में डूबा रहेगा। केवलआप ही उसका आनन्द लेंगे, दूसरे को समझाभी नहीं सकेंगे। भगवान् की पूरी कृपा आपकी सहायता करेगी। जहाँ चेष्टा करने लगे कि नया-नया कुछ-न-कुछ दृश्य दिखा-दिखाकर वे मन को खींचने लगेंगे। आरम्भिकसाधनामें किसी दिन तो बेगार-सा बड़ा बुरा मालूम होगा; क्योंकि मन भागना चाहेगा। पर यदि लगन रही तो फिर स्वयं मन लगने लग जायगा और फिर यह चेष्टा नहीं करनी पड़ेगी कि चलो, पन्ना उलटकर लीला पढ़ें; अपने-आप ठीक समयपर वहफिल्म की तरह माथे में नाचने लग जायगी। कोई बात करेगा, उसके साथ गौण रूप से बात भी कर लीजियेगा; पर मन भाग-भागकर वहीं चला जायगा। बिलकुल ऐसा हो जायगा मानो अपने-आप लीला की फिल्म आती चली जा रही हो,एक-पर-एक आती रहेगी। पर प्रारम्भ में थोड़ी साधना करनी पड़ेगी। फिर आगे चलकर सच मानिये, भगवान् की कृपा से आपके लिये यह बहुत ही आसान हो जायगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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