प्रेम सत्संग सुधा माला पृ. 113

प्रेम सत्संग सुधा माला

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जो लीलाएँ बहुत ही उच्च कोटि की होती हैं, उनमें ऐशवर्य बिलकुल नहीं होता। जिसके मन में जरा भी ऐशवर्य की ओर टान रहती है, उसे उन लीलाओं को सुनकर आश्चर्य होता है। भजन करते-करते पहले पूर्ण ज्ञान हो जाता है, इसके बाद वह ज्ञान धीरे-धीरे छिपने लगता है, तब मधुर लीलाओं का प्रकाश होता है। श्रीराधाकृष्ण की लीला एक-से-एक मधुर है, जितना भक्त ऊँचा उठता है, उतनी ही वह मधुरता गहरी होती जाती है। इसकी कोई सीमा नहीं है। आज तक जितने भक्त हुए हैं, उन्हें जो-जो अनुभव हुए हैं और वे जितना वाणी में कह सके हैं उसी का वर्णन हम लोगों को प्राप्त होता है। पर वह उतना ही हो, यह बात नहीं। वह तो अनन्त है, असीम है। कोई उससे भी ऊँचा भक्त हो तो उससे भी ऊँची तथा और भी विलक्षण मधुर लीला भगवान् उसे दिखा सकते हैं।

मन किसी प्रकार भी लीला में फँस जाय तो काम बन गया। सोचिये- गायों की कतार खड़ी है, श्यामसुन्दर हाथ में दोहनी (दूध दुहने का पात्र) लेकर खड़े हैं। गायें हरी-हरी दूब चर रही हैं। श्यामसुन्दर का सखा सुबल पास में खड़ा है। प्रत्येक गाय रँभा रही है तथा चाहती है कि श्रीकृष्ण पहले उसे दुहें। श्रीकृष्ण तो भक्तवाच्छाकल्पतरु हैं। एक ही समय एक क्षण में जितनी गायें हैं, उतने रूपों में प्रकट होकर दुहने बैठ जाते हैं। बछड़ा श्रीकृष्ण की पीठ सूँघ रहा है। गाय श्रीकृष्ण का सिर सूँघ रही है। दूर पर श्रीराधारानी सखी के कंधे पर हाथ रखकर यह छबि निहार रही हैं। उनकी आँखों में प्रेम के आँसू भरते जा रहे हैं।

अब इन्हीं गाय, दूब, बछड़ा- किसी में भी मन लगा रहे और मृत्यु हो जाय तो इससे बड़ी सुन्दर मृत्यु और क्या होगी?

81- निराश नहीं होना चाहिये। कभी किसी दिन एक क्षण में ऐसी घटना हो जायगी कि बस, उस रस-समुद्र में बह जाइयेगा। उसमें यह नियम नहीं कि धीरे-धीरे ऊँचा उठते-उठते तब होगा। कभी किसी दिन हठत् कोई ऐसी कृपा की आँधी आयेगी कि उड़ाकर, बिलकुल जमीन पर से हटाकर रस-समुद्र के ठीक बीच में ले जाकर पटक देगी, जहाँ से फिर लौटना असम्भव होगा। किनारे रहे तब, तो फिर शायद पीछे भी लौटें, पर वह आँधी इतनी दूर उड़ा ले जायगी कि फिर जमीन का ओर-छोर भी दिखना बंद हो जायगा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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