प्रेम सत्संग सुधा माला
11- केवल विश्वास चाहिये। भगवान् पर विश्वास होते ही सब काम बना-बनाया है। सकाम-निष्काम की बात नहीं है। बात है भगवान् का भजन करने की, विश्वासपूर्वक भगवान् को स्मरण करने की। फिर चाहे किसी भी कामना से आप भगवान् को क्यों न भजें, आपको श्रीभगवान् ही मिलेंगे। श्रीमहाप्रभु चैतन्यदेव के समान प्रेम की शिक्षा देने वाला और कौन मिलेगा? उन्होंने एक जगह स्वयं अपने प्रिय-से-प्रिय शिष्य श्रीसनातन गोस्वामी को शिक्षा देते हुए कहा था—‘अन्यकामी यदि करे कृष्णेर भजन’ (यदि मनुष्य किसी दूसरी कामना से भी श्रीकृष्ण का भजन करे तो)‘ना माँगि लेओ श्रीकृष्ण तारे देन स्व-चरण’ (श्रीकृष्ण न माँगने पर भी उसे अपने चरणों को ही दे डालते हैं) ऐसे क्यों? इस पर कहते हैं—‘कृष्ण कहे (श्रीकृष्ण कहते हैं)आमाय भजे (यह मेरा भजन तो करता है) (पर)माँगे विषय-सुख’ (माँगताहै विषय-सुख)। (ओह)‘अमृत छाड़ि माँगे विष एइ बड़ मूर्ख’ (यहअमृतछोड़कर विष माँगता है— देखो तो, यहकितनामूर्ख है।) (किंतु)‘आमि विज्ञ’ (मैं तो मूर्ख नहीं हूँ— मैं तो जानता हूँ, सब कुछ जानता हूँ।) किस बात में इसका मंगल है, किसमें अमंगल है— सब जानता हूँ।‘एइ मूर्खे विषय केन दिव’ (मैंभला जान-बूझकर इसका हितैषी होकर भी इस मूर्ख को विषय देकर ही कैसे टाल दूँ। मैं तो)‘स्वचरण दिया विषय भुलाइब’ (इसे अपने चरणों का प्रेम देकर इसका विषय-प्रेम भुला दूँगा— इसके विषय-प्रेम को नष्ट कर दूँगा)। सफलता होगी- पर निरंतर उनको भजने से,उनको याद करने से। भाव चहे कुछ भी हो। आप करते नही; यही कमी है। वास्तम में आप चाहते ही नहीं, तब क्या हो। |
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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