प्रेमाधीन शिरोमणि हो तुम -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा के प्रेमोद्गार-श्रीकृष्ण के प्रति

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राग पूर्वी - तीन ताल


प्रेमाधीन शिरोमणि हो तुम प्रेमी के कर बिक जाते।
प्रेम विशुद्ध देख भगवान को भी सहज बिसर जाते॥
तुम रस हो, रसमूल, रसिक तुम परम रसों के हो जाता।
देख दिव्य रस, तुम्हें सहज ही निज रस-रूप भूल जाता॥
परम गुणाकर हो, गुणज तुम, तुम सद्‌‌गुण वितरण करते।
देख दिव्य सद्‌‌गुण, अपने को उस पर न्योछावर करते॥
जो सब छोड़ परम श्रद्धा से तुम्हें लक्ष्यकर चल पड़ता।
तुरत सामने आ जाते तुम, नहीं उसे चलना पड़ता॥
मैं तो नित्य प्रेम-कण-विरहित हूँ सर्वथा शुष्क रसहीन।
सद्‌‌गुण एक नहीं है मुझमें दोष पूर्ण हूँ, दुर्गुण-पीन॥
पीठ दिये ही हूँ मैं रहती, सदा विमुख ही हूँ चलती।
इतने पर भी कभी न मुझको अपनी नीच दशा खलती॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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