प्रेमवाटिका -रसखान पृ. 5

प्रेमवाटिका -रसखान

दोहा 21-25

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इकअंगी बिनु कारनहिं, इक रस सदा समान।
गनै प्रियहि सर्वस्‍व जो, सोई प्रेम समान।।21।।

डरै सदा चाहै न कछु, सहै सबै हो होय।
रहै एक रस चाहकै, प्रेम बखानो सोय।।22।।

प्रेम प्रेम सब कोउ कहै, कठिन प्रेम की फाँस।
प्रान तरफि निकरै नहीं, केवल चलत उसाँस।।23।।

प्रेम हरी को रूप है, त्‍यौं हरि प्रेम स्‍वरूप।
एक होई द्वै यों लसैं, ज्‍यौं सूरज अरु धूप।।24।।

ज्ञान ध्‍यान विद्या मती, मत बिस्‍वास बिवेक।।
विना प्रेम सब धूर हैं, अग जग एक अनेक।।25।।

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