प्रेमकल्पलता श्रीराधा जी का महाभाव
श्रीकृष्ण की ह्लादिनी शक्ति श्रीराधा रानी परम प्रियतम श्रीकृष्ण को आनन्द प्रदान करती हुई जब किसी भगवान जीव पर स्वयं अथवा अपनी सखी-सहचरी द्वारा कृपावर्षा करती हैं, तभी जीव विशुद्ध श्रीकृष्णप्रेम की ओर आकृष्ट होता है। जीवगत विकार मायाशक्ति के द्वारा जीव को सतत खींच रहा है और इसी से विषयों के सुख की आशा में नित्य दुःखों के भँवर में पड़ा जीव गोते खाता रहता है। इस मायाशक्ति के आकर्षण से मुक्त होने के लिये राधा या उनकी किसी सखी-सहचरी के अनुगत होकर उनसे प्रार्थना करनी चाहिये। जिससे श्रीराधा-माधव के विशुद्ध प्रेम की ओर वे हमें खींच सकें-
अब बिलम्ब जनि करो लाडिली, कृपा दृष्टि टुक हेरो।
जमुन पुलिन गलिन गहवर की विचरूँ साँझ सेवेरो।।
निशि दिन निरखों जुगल माधुरि रसिकन ते भट मेरो।
ललितकिसोरी तन मन व्याकुल श्रीबन चहत बसेरो।।
ललितकिशोरी जी ने इस प्रकार राधा जी से प्रार्थना की है। श्रीकृष्ण परम देव हैं। उनके छहों ऐश्वर्यों की मूलरूपा श्रीराधा उनकी सतत आराधना करती रहती हैं। वृन्दावन के एकमात्र स्वामी परमेश्वर श्रीकृष्ण हैं और श्रीराधा भी श्रीकृष्ण के द्वारा आराधिता हैं। श्रीराधा और श्रीकृष्ण एक ही शरीर हैं। लीला हेतु पृथक बन गये। श्रीराधा भगवान श्रीकृष्ण की सम्पूर्ण ईश्वरी हैं, सनातनी विद्या हैं। उनके प्राणों की अधिष्ठात्री हैं। एकान्त में चारों वेद उनकी स्तुति करते हैं। उनकी महिमा श्रीब्रह्मा भी वर्णित नहीं कर सकते। श्रुतियाँ राधा जी का इन अट्ठाइस नामों से स्तुतिगान करती हैं- राधा, रासेश्वरी, रम्या, कृष्णमन्त्राधिदेवता, सर्वाद्या, सर्ववन्द्या, वृन्दावनविहारिणी, वृन्दाराध्या, रमा, अशेषगोपीमण्डलपूजिता, सत्या, सत्यपरा, सत्यभामा, श्रीकृष्णवल्लभा, वृषभानुसुता, मूल प्रकृति, ईश्वरी, गन्धर्वा, राधिका, आरम्या, रुक्मिणि, परमेश्वरी, परात्परतरा, पूर्णा, पूर्णचन्द्रनिभानना, भुक्तिमुक्तिप्रदा और भवव्याधिविनाशिनी।
श्रीराधा जी को इन नामों से भजने वाले मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाते हैं, वती हो जाते हैं, वायु से भी पवित्र एवं वायु को पवित्र करने वाले तथा सब ओर पवित्र एवं सबको पवित्र करने वाले हो जाते हैं। वे राधा-कृष्ण के प्रिय हो जाते हैं। जहाँ-जहाँ उनकी दृष्टि पड़ती है, वहाँ तक वे सबको पवित्र कर देते हैं।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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