प्रीति बटाऊ सौ कत करिऐ।
हिलि मिलि चलै कान्ह परदेसी, फिरि पछिताए मरिऐ।।
सुनियत कथा स्रवन सीता की, का बिचारि अनुसरिऐ।
बिनु अपराध तजै सेवक कौ, ता ठाकुर सौ डरिऐ।।
एक बार बसुद्यौ कौ ढोटा, बातन गोकुल छरिऐ।
बाल बिनोद जसोदा आगै, सबहिन कौ मन हरिऐ।।
जाति पाँति बलि सरबस दीन्हौ, तिनकि पीठि पग धरिऐ।
'सूरदास' ऐसे लोगनि तै, पार न क्यौ हूँ परिऐ।। 136 ।।