प्रियतम! तुमने सहज सभी -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

अभिलाषा

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तर्ज लावनी - ताल कहरवा


 
प्रियतम! तुमने सहज सभी सुविधा दी मुझको, कर अति प्यार।
इन्द्रिय, इन्द्रिय-विषय-सभी कुछ दिये सहज ही विविध प्रकार॥
आगे-से-‌आगे तुम देते रहते, सच्चा देख अभाव-
माँगे, बिन माँगे, तुम कुछ भी नहीं देखते मेरा भाव॥
अस्वीकार करूँ मैं तुमको, चाहे करूँ नित्य अपमान।
देख-रेख करते कपूत की स्नेहमयी माँ-सदृश अमान॥
नहीं चाहता, अतः जगत्‌‌ की वस्तु-परिस्थिति क्षुद्र-महान।
बढ़ती रहे परम श्रद्धा-विश्वास अटल तुममें, भगवान!॥
रहे न मन में स्व-सुख-वासना का, प्रभु! कहीं जरा भी लेश।
बढ़ते रहे चरण-रति निर्मल, ‘प्रतिपल-वर्धमान’ सविशेष॥
सर्व-समर्पण पूर्ण सहज हो, रहे नहीं ममता-‌अभिमान।
बना रहूँ लीलोपकरण मैं अविरत लीलामय भगवान॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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