मीराँबाई की पदावली
विरहानुभव राग दरबारी
प्रभु जी थे कहाँ गया नेहड़ी लगाय ।। टेक ।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ थे = तू। नेहडी = नेह, प्रेम। विस्वास = विश्वासपात्र। संगाती = साथी। वाती बराय = ( विरह की ) आग जलाकर। समंद = समुद्र। छौ = हो। कबर = अरे कब। रह्योइ = रहाही।
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