प्रथम सनेह दुहुँनि मन जान्यौ।
नैन-नैन कीन्ही सब बातै, गुप्त प्रीति प्रगटान्यौ।।
खेलन कबहुँ हमारैं आवहु, नंद-सदन, ब्रज गाउँ।
द्वारैं आइ टेरि मोहिं लीजौ, कान्ह हमारौ नाउँ।।
जो कहियै घर दूरि तुम्हारौ, बोलत सुनियै टेरि।
तुमहिं सौंह वृषभानु बबा की, प्रात-साँझ इक फेरि।।
सूधी निपट देखियत तुम कौं, तातैं करियत साथ।
सूर स्याम नागर, उत नागरि राधा, दोउ मिलि गाथ।।674।।